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लंगड़ा सोहनलाल लंगड़ाते हुए अपनी पुरानी सी झोपड़ी में आता है जहां पुरानी और फटी हुई कपड़े पहन कर राजू पहले से ही उसका इन्तजार कर रहा है। अरे पिताजी आ गए आज बहुत देर कर दी पता है मुझे आपकी चिंता हो रही थी अरे बेटा क्या करूं। आज बाजार में बहुत देर हो गई

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दुर्गति को देखकर कोई कह नहीं सकता था कि वो करण की सौतेली मां थी। करण की मां भी गुजरने के सालभर बाद करण के पिता अशोक दुर्गावती को ब्याह कर लाए थे। शुरू शुरू में दुर्गावती के प्यार को देखकर लोग कहते थे। ये सब तब दिखावा किया। सौतेली मां आखिर सौतेली मां?

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यदि नाम का लगभग 8 10 वर्ष का लड़का विजय नगर इलाके में रहता था वह समय पर अपना प्रतीक काम करने वाला परिश्रमी और अनुशासित लड़का था। लेकिन उसके पड़ोस और स्कूल के लड़के उसके सीधे स्वभाव का फायदा उठा कर अपना काम निकलवाने के बाद उसके काम में

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राजीव पेशे से डॉक्टर हैं। उनकी पत्नी पायल हाउसवाइफ हैं। उनका एक ही बेटा है रक्ष। दोनों से बहुत प्यार करते हैं और उसकी हर ख्वाहिश पूरी करने की कोशिश करते हैं। रक्ष वैसे तो स्वभाव का बहुत ही अच्छा है लेकिन जब उसकी बात नहीं मानी जाती तो वो बहुत सीमित करता है

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अंधी प्रतिदिन मंदिर के दरवाजे पर चार खड़ी होती दर्शन करने वाली बाहर निकलती तो वहां अपना हाथ फैला देती और विनय पूर्वक कहती। बाबूजी अंधी पर दया हो जाए। मंदिर में आने वाली व्यक्ति श्रद्धालु एवं सहृदय होते हैं इसलिए !

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